दोस्तों भगवान शिव और माता पार्वती के प्रेम की चर्चा किसी से छुपी नहीं है दोनों के प्रेम और विवाह की बातें आज भी लोगों के बीच की जाती हैं शिव और पार्वती का विवाह महाशिवरात्रि के पर्व पर होने की मान्यता है परंतु सबके मन में उत्सुकता रहती है कि दोनों का विवाह कहां और कैसे हुआ था नमस्कार मित्रों एक बार फिर से आपका स्वागत है आकाश स्टुडिओ में आज हम आपको बताएंगे कि भगवान शिव और माता पार्वती ने कहा लिए थे सात फेरे
भारत के उत्तराखंड राज्य का त्रियोगीनारायण मंदिर ही वह पवित्र और विशेष पौराणिक मंदिर है इस मंदिर के अंदर सदियों से अग्नि जल रही है इसी पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर शिव पार्वती ने विवाह रचा था यह स्थान रुद्रप्रयाग जिले का एक हिस्सा है ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु माता लक्ष्मी भुदेवी के साथ विराजमान है इसके संबंध में मान्यता है कि माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी ऐसे में सभी देवता भी यही चाहते थे कि पर्वतराज कन्या पार्वती का विवाह शिव जी से हो किंतु भगवान शिव की तरह से ऐसी कोई इच्छा नहीं दिखाई गई जिसके बाद माता पार्वती ने ठान लिया कि वह विवाह करेंगी तो सिर्फ भोलेनाथ से ही करेंगे शिव जी को अपना पति बनाने के लिए उन्होंने बहुत कठोर तपस्या शुरू कर दी यह देख शंभू नाथ ने अपनी आंखें खोली और पार्वती से कहा कि वह किसी समृद्ध राजकुमार से शादी करें उन्होंने यह भी बताया कि एक तपस्वी के साथ जीवन यापन करना आसान नहीं है पार्वती ने साफ मना कर दिया कि वह सिर्फ भगवान शिव से ही विवाह करेंगी
माता पार्वती ये हट्ट देख कर भोलेनाथ पीगल गए और उनसे विवाह करने के लिए तैयार हो गए बता दे कि शिव जी ने तपस्या से खुश होकर फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन माता पार्वती के साथ विवाह किया था ऐसा बताया जाता है कि माता पार्वती ने जहां तपस्या की थी वह स्थान आज केदारनाथ के पास स्थित गौरी कुड है और तपस्या पूरी होकर गुप्तकाशी में देवी ने भोलेनाथ के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे शिव जी ने स्वीकार कर लिया था कि जहां पर दोनों ने शादी की थी मंदिर के अंदर अग्नि प्रज्वलित रहती है शिव पार्वती के विवाह के प्रतीक मानी जाती है इसलिए इस मंदिर को अखंड धूनी मंदिर भी कहा जाता है यही कारण है कि उस जगह का नाम त्रियुगी हो गया जिसका अर्थ है अग्नि जो तीन युगो से जल रही है त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी
भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह स्थान को ब्रह्म सिला कहा जाता है जी की यह मंदिर ठीक उसके सामने हैं पुराण में महात्मा मंदिर का वर्णन भी किया है ऐसा कहा जाता है कि विवाह के समय भगवान शिव को एक गाय भी भेंट की गई थी उस गाय को मंदिर में एक स्तंभ पर बांधा गया आपको बता देते कि यहां विवाह से पहले सभी देवताओं ने इस जगह स्थान भी किया था और इसलिए यहां 3 कुंड बने हैं जिन्हें रूद्र कुंड विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहा जाता है
रूद्र कुंड - विवाह में उपस्थित होने वाले सभी देवी देवताओं ने इस कुंड में स्नान किया था इन तीन कुंडों में जल सरस्वती कुंड से आता है सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु के नासिका में हुआ था ऐसा माना जाता है कि इस कुंड का स्थान करने से संतान से मोक्ष मिल जाता है
विष्णु कुंड - भगवान शिव के विवाह से पहले विष्णु इसमें स्थान किया था
ब्रह्मा कुंड - इस कुंड में भगवान शिव के विवाह से पूर्व स्नान किया था स्नान करने के पश्चात युवाओं में पुरोहित के रूप में वह प्रस्तुत हुए थे मित्रों वेदों में उल्लेख है कि त्रियुगीनारायण मंदिर त्रेता युग से स्थापित है जबकि केदारनाथ, बद्रीनाथ द्वापर युग में स्थापित है यह भी मान्यता है कि इस जगह पर भगवान विष्णु ने वामन देवता का अवतार लिया था पौराणिक कथा में मुताबिक इंद्रासन पाने के लिए राजा बलि को 100 यज्ञ करने थी इनमें से राजा बलि ने 99 यज्ञ पूरे कर चुके थे तब विष्णु ने वामन अवतार लेकर यज्ञ रोक दिया था जिससे राजा बलि का यज्ञ भंग हो गया यहा भगवान विष्णु को वामन देवता के अवतार में पूजा जाता है आज रुद्रप्रयाग जिले में स्थित शिव और पार्वती का विवाह स्थल त्रियुगीनारायण मंदिर है
आप यहां मंदिर तक रुद्रप्रयाग जिले के सोनप्रयाग से सड़कों के रास्ते से 12 किलोमीटर सफर तय करके पहुंच सकते हैं आपको बता दें कि प्रयोगी नारायण की बनावट केदारनाथ मंदिर की सौरचना जैसी लगती है मंदिर के अंदर विष्णु जी माता लक्ष्मी सरस्वती की मूर्ति स्थापित की गई है इसके अलावा मंदिर में भगवान बद्रीनाथ,माता सीता,भगवान रामचंद्र और कुबेर की मूर्ति स्थिति है।
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